केजरीवाल के खिलाफ ED की कार्रवाई को हरी झंडी, क्या बच पाएंगे पूर्व सीएम?

एनपीटी दिल्ली ब्यूरो
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है। यह अनुमति इसलिए अहम है क्योंकि केजरीवाल ने सक्षम प्राधिकरण की मंजूरी न होने को आधार बनाकर दिल्ली हाई कोर्ट में अपने खिलाफ केस निरस्त करने की मांग की थी।
मामला क्या है?
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर ED की चार्जशीट पर ट्रायल कोर्ट को संज्ञान लेने से रोकने की मांग की थी। उनका तर्क है कि ED ने उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सक्षम प्राधिकरण की अनुमति नहीं ली। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत CBI को अनुमति लेना आवश्यक बताया गया है और कहा कि यही नियम PMLA मामलों में ED पर भी लागू होता है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2024 में तेलंगाना हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए PMLA मामलों में भी सीआरपीसी की धारा 197(1) को लागू माना। कोर्ट ने कहा कि लोकसेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सक्षम प्राधिकरण की अनुमति अनिवार्य है।
सीआरपीसी 197(1) क्या कहती है?
यह धारा लोकसेवकों को उनके आधिकारिक कार्यों से जुड़े मामलों में सुरक्षा प्रदान करती है। इसके तहत, मुकदमे के लिए सक्षम प्राधिकरण की अनुमति जरूरी है। सक्षम प्राधिकरण वह है जिसके पास लोकसेवक को पद से हटाने का अधिकार होता है।
आगे का रास्ता
अब हाई कोर्ट को यह तय करना होगा कि ED द्वारा हासिल की गई अनुमति चार्जशीट दाखिल होने से पहले मिली थी या बाद में। यदि अनुमति चार्जशीट के बाद मिली है, तो कोर्ट को यह देखना होगा कि क्या इस आधार पर चार्जशीट को रद्द किया जा सकता है।
कानूनी प्रक्रिया पर असर
यदि कोर्ट यह मानता है कि चार्जशीट वैध नहीं है, तो केजरीवाल को राहत मिल सकती है। हालांकि, यदि अनुमति को पर्याप्त माना गया, तो मामले में उनके लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। ED के इस कदम से यह मामला और जटिल हो गया है और हाई कोर्ट का फैसला दोनों नेताओं के भविष्य के लिए निर्णायक होगा।