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रणवीर इलाहाबादिया विवाद: क्या डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर बढ़ती अश्लीलता पर सरकार की सख्ती जरूरी है?

हाल ही में सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर रणवीर इलाहाबादिया के एक विवादित बयान ने पूरे देश में बहस छेड़ दी है। यूट्यूब पर दिए गए उनके बयान की जमकर आलोचना हो रही है, जिसके बाद सरकार ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित हो रहे आपत्तिजनक कंटेंट को लेकर सख्त कदम उठाने का फैसला किया है।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अनुसार, अश्लीलता और हिंसा से भरे डिजिटल कंटेंट पर रोक लगाने के लिए मौजूदा कानूनों की समीक्षा की जा रही है और जल्द ही नए कड़े नियम लाए जा सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर आपत्तिजनक कंटेंट की बढ़ती संख्या और इसके खिलाफ मिल रही शिकायतों को देखते हुए सरकार ने इस दिशा में कड़ा रुख अपनाने का संकेत दिया है। सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म्स के लिए मौजूदा नियम

भारत में डिजिटल कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए आईटी नियम, 2021 लागू हैं, जिसमें सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया के लिए कुछ गाइडलाइन्स दी गई हैं। इन नियमों के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को गैरकानूनी, हिंसक या अश्लील सामग्री को तुरंत हटाने का निर्देश दिया गया है।

आईटी नियम 2024 के तहत, इन प्लेटफॉर्म्स को यह भी बताना होगा कि किसी भी आपत्तिजनक कंटेंट को किसने पोस्ट किया है। साथ ही, सोशल मीडिया कंपनियों को एक मुख्य अधिकारी नियुक्त करने और शिकायतों पर 24 घंटे के भीतर कार्रवाई करने की भी जिम्मेदारी दी गई है।

OTT प्लेटफॉर्म्स जैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, डिज़्नी+ हॉटस्टार और यूट्यूब को भी आईटी नियमों के तहत रेगुलेट किया जाता है। इन प्लेटफॉर्म्स को अपने कंटेंट का सही तरीके से वर्गीकरण करना होता है और एडल्ट कंटेंट को आयु-आधारित श्रेणी में डालना अनिवार्य है।

नए कड़े कानूनों की आवश्यकता

भले ही आईटी नियम, 2021 पहले से लागू हैं, लेकिन सरकार का मानना है कि इन नियमों को और सख्त करने की जरूरत है। हाल ही में, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को “डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड” लागू करने के निर्देश दिए हैं, ताकि गैरकानूनी और अनैतिक कंटेंट को प्रभावी ढंग से रोका जा सके।

सरकार इस बात पर भी विचार कर रही है कि सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को एक नए कानूनी ढांचे के तहत लाया जाए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि डिजिटल माध्यमों पर परोसे जाने वाले कंटेंट से समाज में हिंसा और नफरत न फैले।

अश्लीलता की परिभाषा और अदालती नजरिया

अश्लीलता की परिभाषा समय के साथ बदलती रही है। पहले, इसे केवल यौन सामग्री से जोड़ा जाता था, लेकिन अब इसे सामाजिक नैतिकता, व्यवस्था और सम्मान के नजरिए से देखा जाता है।

1957 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘रंजीत डी. उडेशी केस’ में कहा था कि अश्लील सामग्री समाज पर बुरा प्रभाव डाल सकती है। वहीं, ‘साक्षी केस’ में अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी भी होनी चाहिए, ताकि किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे।

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