धुमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया प्रकृति पर्व सरहुल

एनपीटी लातेहार ब्यूरो,
लातेहार (झा०खं०), लातेहार पूरे जिला में धुमधाम व हर्षोल्लास के साथ प्रकृति पर्व सरहुल मंगलवार को मनाया गया। बारियातु प्रखंड मुख्यालय के नचना टोंगरी स्थित सरना पड़हा भवन परिसर में मंगलवार को प्रकृति पर्व सरहुल धुमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। प्रकृति पूजा कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि के रूप में स्थानीय विधायक प्रकाश राम, विशिष्ट अतिथि प्रखंड प्रमुख उर्मिला देवी, उप प्रमुख निशा शाहदेव, प्रखण्ड विकास पदाधिकारी अमीत कुमार पासवान, अंचलाधिकारी नंद कुमार राम, थाना प्रभारी देवेंद्र कुमार, जेएमएम प्रखण्ड अध्यक्ष राजेन्द्र गंझु,प्रदेश कांग्रेस नेता बबन कुमार सिंह, कांग्रेस प्रखंड अध्यक्ष रिगन कुमार, सेवा निवृत्त शिक्षक जानकी नन्दन राणा, समाज सेवी मो सालीम, लाल आशिस नाथ शाहदेव, मुखिया सरिता देवी, राजीव भगत, शांति देवी, राजेंद्र उरांव, सुरेश उरांव,रानो देवी, केदार गंझू, तेतरी देवी, सुरेश उरांव, आरजेडी प्रखंड अध्यक्ष लवकुश यादव, आजसू प्रखंड अध्यक्ष बिनोद राम, पंसस मो होजैफा, संतोष भगत सहित कई लोग शामिल हुए। पूजा का प्रारंभ सर्वप्रथम विधिवत डण्डा कटना, सरना स्थल पर धर्म अगुआ तेतर उरांव، शिबु पाहन،व प्रधान उरांव के द्वारा संयुक्त रूप से प्रकृति पूजा कर किया गया। इसके पश्चात आए सभी अतिथियों को सरहुल पूजा समिति द्वारा बारी बारी से बैच व शॉल ओढाकर स्वागत किया गया।इस दौरा सरना भवन परिसर में प्रखंड के विभिन्न खोड़हा दल आदिवासी रितीरेवाज के अनुसार मांदर नगाड़ा ढोल के थाप पर नृत्य करते पारंपरिक वेशभूषा में शामिल हुए। वहीं मंच से संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि विधायक राम ने कहा कि सरहुल पर्व के साथ ही प्रकृति अपने नए स्वरूप में प्रकट होती है। इसी के साथ सरना समाज का नव वर्ष का त्यौहार भी प्रारम्भ होता है। उन्होंने कहा कि सरना मां के आशीर्वाद से सभी लोग खुशी पूर्वक जीवन यापन कर रहे है। सरहुल पर्व में हमारे पूर्वज पुराने वस्त्र, पुराना मिट्टी के बर्तन को बदलते थे, घरों की लिपाई पोताई करते थे, नया फल अन्न सरहुल के बाद ही चखते थे, ऐसी मान्यताओं को बरकरार रखने की जरूरत है। अंचलाधिकारी राम ने कहा कि आदिवासियों का सबसे प्रमुख पर्व है सरहुल. इस पर्व के साथ ही फसलों की कटाई शुरू होती है. सरहुल से ही आदिवासियों का नववर्ष शुरू होता है. चैत्र में मनाये जाने वाला सरहुल दो शब्दों से मिलकर बना है. ‘सर’ और ‘हुल’ के मिलन से सरहुल बना है. ‘सर’ का अर्थ होता है ‘सरई’ यानी सखुआ (साल का पेड़) के ‘फूल/फल’. वहीं, हुल का अर्थ है ‘क्रांति’. दोनों जब मिलता है, तो बनता है सरहुल. इस तरह सखुआ के फूलों की क्रांति को सरहुल कहा जाता है. सुर्य और धरती के विवाह का प्रतीक है सरहूल। इसके पश्चात प्रदेश कांग्रेस नेता बबन कुमार सिंह ने कहा कि सरहुल प्रकृति से जुड़ाव और सामूहिकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि सरकार को आदिवासी समुदाय की परंपराओं और संस्कृति के संरक्षण के लिए विशेष योजनाएं बनानी चाहिए। और उन्होंने सभी से पर्यावरण बचाओ को लेकर एक एक पेड़ लगाने की अपील किया । इसके अलावा आये सभी अतिथियों ने बारी बारी से सरहूल पर्व पर प्रकाश डाला। इसके पश्चात सरना भवन परिसर से सभी खोडहा दल के सदस्यों ने टोली बना कर शोभायात्रा निकाला जो सरना भवन परिसर से प्रारंभ हो कर मुख्य सड़क एन एच 22 से +2 उच्च विद्यालय, ग्रामीण बैंक, बस स्टैंड , बाजार टांड, फुलसू चार मोहान, होते ब्लॉक स्थित मैदान तक गया।इसबीच प्रत्येक खोड़हा दल एक दुसरे से बेहतर प्रस्तुति देने को तत्पर दिखे।सड़कों पर लय स्वर एवं ताल के साथ सरहुली गीत गुंज रहे थे, आनंद के इस उत्सव में शामिल हर सरना धर्मालंबीयों के साथ ही साथ अन्य धर्मों के लोग मस्त थे।वहीं अंचलाधिकारी राम, बीडीओ पासवान,थाना प्रभारी देवेंद्र कुमार ने भी मांदर के थाप पर लोगों को खूब झुमाया। इस पुरे कार्यक्रम को सफल बनाने में सरहुल महापर्व प्रकृति पूजा समिति का सराहनीय भुमिका रहा।प्राकृतिक पर्व को लेकर जिप सदस्य रमेश राम,स्थानीय पंचायत के मुखिया सरिता देवी, प्रखंड सह अंचल व पुलिस प्रशासन की ओर से चना, गुड़ व शर्बत का व्यवस्था किया गया था। साथ ही थाना पुलिस भी विधि व्यवस्था बनाये रखने को लेकर चुस्त-दुरुस्त दिखे।