आठ वर्षीय अरहम रफिक ने रखा रोजा, नन्हे रोजेदार की अनोखी आस्था

एनपीटी लातेहार ब्यूरो,
लातेहार (झा०खं०), बरयातु, रमजान का पाक महीना इबादत, सब्र और भक्ति का संदेश देता है। इस दौरान जहां बुजुर्ग और युवा पूरे उत्साह से रोजा रख रहे हैं, वहीं नन्हे बच्चे भी अपनी आस्था और समर्पण से मिसाल पेश कर रहे हैं। इसी कड़ी में बरयातु प्रखण्ड के इटके गांव के आठ वर्षीय अरहम रफिक ने रोजा रखकर सबका ध्यान खींचा है। रमजान की शुरुआत बीते रविवार को हुई थी, और अरहम अब तक चार रोजे रख चुका है। हालांकि कम उम्र के कारण वह एक दिन छोड़कर रोजा रखता है, लेकिन उसकी लगन किसी से कम नहीं। जब सूरज अपनी तपिश बरसा रहा होता है, और बच्चे खेल-कूद में व्यस्त रहते हैं, तब अरहम पूरे अनुशासन के साथ रोजा रखता है। अरहम ने बताया कि रोजा रखने से भूख और प्यास तो लगती है, लेकिन दिल को जो सुकून और खुशी मिलती है, वह सबसे अलग है। उसका इरादा है कि दो-चार वर्षों बाद वह पूरे रमजान के रोजे रखेगा। अरहम ने रोजा रखने की प्रेरणा अपने माता-पिता (अम्मी-अब्बू) से ली है। उसने सुना है कि अल्लाह तआला रोजेदार की दुआ कबूल करते हैं, खासतौर पर इफ्तार के वक्त। इसीलिए जब इफ्तार के लिए स्वादिष्ट पकवान, फल, ड्रायफ्रूट्स और जूस सामने होते हैं, तब अरहम भी सभी रोजेदारों की तरह समय का इंतजार करता है। उसकी मान्यता है कि “इफ्तार के वक्त जब रोजेदार हाथ उठाकर अल्लाह से दुआ मांगते हैं, तो वह दुआ सबसे पहले कबूल होती है। अरहम की मासूमियत और आस्था ने पूरे गांव में प्रेरणा का संचार किया है। उसकी लगन यह संदेश देती है कि सच्ची भक्ति उम्र की मोहताज नहीं होती। आठ साल की नन्ही उम्र में उसका यह संकल्प निश्चित रूप से एक मिसाल है, जो सभी के दिलों को छू रहा है। रमजान के इस पाक मौके पर अरहम की कहानी बताती है कि जब दिल में सच्ची नीयत और श्रद्धा हो, तो उम्र मायने नहीं रखती।