बागपत

राशन दो, रोजगार नहीं?” – युवाओं को नौकरी से वंचित कर गुमराह कर रही है सरकार!

देश में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। करोड़ों युवा दिन-रात पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे हैं, लेकिन सरकार की नीतियाँ रोजगार देने की बजाय मुफ्त राशन बाँटने तक सीमित रह गई हैं। सवाल ये उठता है – क्या मुफ्त राशन से देश का भविष्य सुरक्षित होगा? या यह युवाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर गुमराह करने की एक सोची-समझी रणनीति है?

बेरोजगारी की बढ़ती दर और युवाओं की हताशा

हाल के वर्षों में सरकारी नौकरियों की संख्या घटती जा रही है। जहाँ पहले हर वर्ष लाखों सरकारी भर्तियाँ निकला करती थीं, वहीं अब कई विभागों में वर्षों से भर्ती नहीं हुई। परीक्षा होती है तो परिणाम अटक जाते हैं, परिणाम आते हैं तो नियुक्ति टल जाती है। कुछ मामलों में तो भर्ती प्रक्रिया अदालतों में लटक जाती है। इस स्थिति में युवा खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

मुफ्त राशन: सुविधा या भ्रम?

सरकार की तरफ से राशन योजना को गरीबों की मदद के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन सवाल ये है कि –
क्या ये वास्तव में मदद है, या फिर युवाओं को निर्भर और मौन बनाने की योजना?
मुफ्त राशन एक तात्कालिक राहत तो हो सकती है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं। यह नीति युवाओं को ‘वोट बैंक’ में बदलने का माध्यम बनती जा रही है।

रोजगार नहीं तो आत्मनिर्भरता कैसे?

“आत्मनिर्भर भारत” का नारा तब तक खोखला रहेगा जब तक देश का युवा आत्मनिर्भर नहीं बनता। और आत्मनिर्भरता के लिए सबसे जरूरी है रोजगार, अवसर और सम्मानजनक आजीविका। यदि सरकार हर वर्ष करोड़ों युवाओं को रोजगार देने का दावा करती है, तो फिर वही युवा सरकारी दफ्तरों और कोर्ट-कचहरी में अपनी नियुक्ति के लिए क्यों भटक रहे हैं?
युवाओं की चुप्पी खतरनाक है

सबसे खतरनाक चीज है – चुप्पी। युवाओं को यह समझना होगा कि अगर वे आज मुफ्त राशन और योजनाओं से संतुष्ट होकर चुप बैठ गए, तो कल उनकी पीढ़ी केवल ‘लाइन में खड़ा रहने वाली पीढ़ी’ बनकर रह जाएगी – कभी गैस सिलेंडर के लिए, कभी राशन के लिए, तो कभी किसी योजना के फार्म के लिए।
रोजगार अधिकार है, एहसान नहीं।
सरकार का काम लोगों को आत्मनिर्भर बनाना है, आश्रित नहीं। मुफ्त राशन जैसी योजनाएँ तब तक उचित हैं जब तक वे किसी संकट के समय में अस्थायी राहत दें। लेकिन जब ये योजनाएँ स्थायी समाधान की तरह प्रस्तुत की जाने लगें और उसके नाम पर नौकरियों से ध्यान हटाया जाए, तो यह एक खतरनाक संकेत है – लोकतंत्र के लिए, और देश के भविष्य के लिए।

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