सिंगरौली

कलिंगा कंपनी की भर्ती पर लाखों की ठगी का आरोप, आवेदन के बावजूद कार्रवाई शून्य

एनसीएल की ओबी कंपनियों में भर्तियों को लेकर बड़ा संयोग या सुनियोजित खेल?

नेशनल प्रेस टाइम्स ब्यूरो।

 सिंगरौली/शक्तिनगर। एनसीएल की ओबी कंपनियों में भर्तियों को लेकर एक बार फिर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। कलिंगा कंपनी में रोजगार के नाम पर रुपये वसूली और फर्जी तरीके से बाहरी लोगों को नौकरी दिलाने का मामला गरमाया हुआ है। इस मामले में मोरवा और शक्तिनगर थाना क्षेत्रों में आवेदन भी पड़े हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।

दो साल पहले भी हो चुका है फर्जीवाड़ा

यह कोई पहला मामला नहीं है। दो वर्ष पूर्व सिक्कल कंपनी में भी ऐसे ही घोटाले सामने आए थे, सूत्रो कि माने तो जब तत्कालीन जीएम रंजीत सिंह ने अनपरा के बंजारा होटल से निगाही क्षेत्र में नौकरी दिलाने के नाम पर ठेकेबाजी और फर्जी नियुक्तियों का सिलसिला चलाया था।

अब कलिंगा में 40 लाख की ठगी की बात सामने आई

ताजा मामला कलिंगा कंपनी से जुड़ा है, जहां नवजीवन विहार में निवास करने वाले वर्तमान जीएम प्रशांत श्रीवास्तव पर गंभीर आरोप लगे हैं। बताया जा रहा है कि उनके संरक्षण में उनके रिश्तेदारों द्वारा अब तक करीब 40 लाख रुपये की ठगी की गई है। एक पीड़ित का कहना है कि उससे तीन लाख रुपये लेकर नौकरी का झांसा दिया गया, लेकिन नौकरी आज तक नहीं मिली। प्रशांत श्रीवास्तव को पूरे लेन-देन की जानकारी थी, लेकिन उन्होंने केवल आश्वासन देकर मामले को टाल दिया।

‘द अंशुल वंशुल’ गैंग सक्रिय, बाहरी लोगों को मिल रही नौकरी

सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रशांत श्रीवास्तव द्वारा “अंशुल वंशुल” नाम के कथित दलाल को बाहर से बुलाकर मनमानी भर्तियां कराई जा रही हैं। इन दलालों के माध्यम से ऐसे लोगों की भर्ती की जा रही है जिनका न तो कोलफील्ड्स का कोई अनुभव है और न ही वे कभी खदान में उतरे हैं। जबकि जिनका वर्षों का अनुभव है, जिन्होंने अपनी जमीन कंपनी को दी है, उन्हें आज तक रोजगार नहीं मिला।

खदान में बढ़ते हादसे बन रहे चेतावनी का संकेत

स्थानीय लोगों का कहना है कि अयोग्य लोगों को नौकरी देने की वजह से हाल ही में खड़िया कलिंगा में दुर्घटना भी हो चुकी है। लेकिन जिम्मेदार आंखें मूंदे हुए हैं। मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह मुद्दा खड़िया जीएम से लेकर एनसीएल के सीएमडी तक पहुंच चुका है। लेकिन साजिश इतनी गहरी है कि कोई कार्रवाई नहीं हो रही। जनप्रतिनिधियों की चुप्पी और अधिकारियों की निष्क्रियता से लोग गुमराह हो रहे हैं।

“रेफरेंस लेकर आओ” ये कैसा सिस्टम ?

स्थानीय और विस्थापित युवाओं को जब वे अपने अधिकार के लिए कलिंगा कार्यालय पहुंचते हैं, तो वहां उन्हें कहा जाता है “रेफरेंस लेकर आओ”। यहां रेफरेंस का सीधा अर्थ है — पैसा। हाल ही में एक ऑडियो वायरल हुआ था जिसमें साफ तौर पर इस लेन-देन की पुष्टि हुई थी। बावजूद इसके न तो कोई कार्रवाई हुई और न ही दोषियों पर शिकंजा कसा गया।

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