*गोड्डा जिला के स्थापना दिवस पर विशेष*

– *आसान नहीं था गोड्डा जिला गठन की राहें।*
नेशनल प्रेस टाइम्स, ब्यूरो।
गोड्डा : तकरीबन 100 वर्षों तक अनुमंडल के रूप में खुद की पहचान बनाने के बाद अंततः 25 मई 1983 को गोड्डा को जिला का दर्जा प्राप्त हुआ। हालांकि जिला बनने की राह इतनी आसान नहीं रही थी । काफी लंबी लड़ाई एवं जद्दोजहद के बाद अंततः संयुक्त बिहार के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा ने गोड्डा को जिले के रूप में ऐतिहासिक घोषणा की थी। जिला गठन को लेकर क्या कुछ हुईं थी इस बात के गवाह रहे हैं जिले के वरिष्ठ बुद्धिजीवी एवं समाज सेवी सच्चिदानंद शाह।
*साल 1983 में गोड्डा को मिला जिला का दर्जा*
इस संदर्भ में जिले के वरिष्ठ जानकार सच्चिदानंद शाह से हुई वार्ता में उन्होंने बताया कि संतालपरगना के कुछ जनप्रतिनिधि संतालपरगना के विभाजन के खिलाफ थे। इस संघर्ष की कहानी के वे स्वयं चस्मदीद गवाह थे। वर्ष 1980 में तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री डॉ० जगन्नाथ मिश्र ने संतालपरगना का दौरा साहेबगंज से दुमका होते हुए मधुपुर में रात्रि विश्राम किया थे। उस काफिले में सच्चिदानंद शाह भी उनके साथ थे। मधुपुर में रात्रि विश्राम के बाद देवघर- गोड्डा और साहेबगंज के कांग्रेसजनों ने उनसे मिलकर संतालपरगना जिले का विभाजन कर तीन जिला बनाने का प्रस्ताव रखा। क्रमश: साहेबगंज, देवघर और गोड्डा। इन बातों को ध्यान से सुनकर उन्होंने कहा कि सत्ता में आने के बाद इसे अमलीजामा पहनाया जाएगा। 1981 में फिर वे मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए। उसके बाद सबों ने गोड्डा को जिला बनाने के लिए किए वायदे को याद दिलाया।
सच्चिदानंद शाह ने बताया कि मैं खुद जनता दरबार में कई बार जाकर अन्य जिले के आए लोगों को साथ लेकर कहते थे कि हम सभी लोग गोड्डा को जिला बनाने की मांग करने के लिए आए हैं। वे मुझे बराबर सकारात्मक आश्वासन देते रहते थे। कुछ दिन बीतने के बाद 30 दिसंबर 1981 को संतालपरगना के विभाजन पर राय जानने के लिए एक बैठक सचिवालय सभाकक्ष में बुलाने की सूचना संतालपरगना के सभी सांसद, विधायक एवं जिला परिषद के अध्यक्ष को पत्र के माध्यम से भेजा गया। उक्त सूचना को देखकर मैं सबसे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता गिरो बाबू से कचहरी में मिला और उनसे कहा कि आपलोग भी कुछ अधिवक्ताओं को लेकर पटना चलें तो अच्छा रहेगा।
इस पर उन्होंने कहा कि आप और बच्चा बाबू पटना चले जाइए। उनके कहने पर बैठक के दो दिन पूर्व पटना चले गए। वहां पहुंचने पर पता चला कि राजनीतिक गलियारे में कुछ अलग खिचड़ी पक रही थी। संतालपरगना के कुछ विधायक दो ही जिला साहेबगंज और देवघर को बनाने के पक्ष में थे।इसके बाद तत्कालीन विधायक अवध बिहारी सिंह से मिले ओर उसके साथ संतालपरगना के सभी विधायकों से बारी- बारी से मुलाकात की। इस दौरान गोड्डा को जिला बनाने पर सहमति बनाये। इसमें जरमुंडी के तत्कालीन झामुमो विधायक अभ्याचरण लाल ने बहुत मदद की। बैठक में ही उन्होंने गोड्डा को जिला बनाने की जोरदार वकालत की। इसके उपरांत तत्कालीन बिहार विधान परिषद के अध्यक्ष पृथ्वी चंद्र किस्कू से मिलकर सारी बातों की जानकारी दिए। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अगर गोड्ड को जिला नहीं बनाया गया तो संतालपरगना का विभाजन नहीं होगा।
30 दिसंबर 1981 के दिन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के आदेश पर विनय कांत दुबे और सच्चिदानंद साहा को बैठक में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बैठक के पहले ही उन लोगों ने जगह ले ली। वहां देखा कि पाकुड़ से भी अधिवक्ताओं का प्रतिनिधि मंडल पहुंचा था। मुख्यमंत्री तत्कालीन मुख्य सचिव पीपी नैय्यर के साथ सभागार में पहुंचे, इस दौरान विधायकों की बारी से राय ली गई। बैठक के बाद बहुमत तीन जिला गठन के पक्ष में आया और इस प्रकार 31 मार्च 1983 की रात गोड्डा को जिला बनाने की विधिवत घोषणा कर दी गई। घोषणा के बाद आग्रह पर 25 मई 1983 को जिला के उद्धाटन की तिथि निश्चित की गई। गोड्डा में प्रथम उपायुक्त मदन मोहन सिंह एवं सुप्रभात दास पुलिस अधीक्षक के रूप में नियुक्ति हुए। इसके गवाह के रूप मेें मेला मैदान में मंच व शिलापट आज भी जिला गठन का गवाह बना हुआ है। उन्होंने कहा कि काफी मसक्कत के बाद गोड्डा जिला बना था।