मैं बागपत हूँ – खंड 18

शिकोहपुर – साहस, शब्द और शहादत की भूमि
लेखक के दो शब्द:
प्रिय पाठकों,
“मैं बागपत हूँ” श्रृंखला का यह 18वाँ खंड आपके स्नेह, उत्साह और समर्थन की प्रेरणा से संभव हो पाया है। यह लेखमाला केवल पंक्तियाँ नहीं, बल्कि एक जनपद की आत्मा का दस्तावेज है – जहाँ हर गाँव, हर कोना अपने भीतर कोई शौर्यगाथा, कोई संस्कृति और कोई चेतना संजोए हुए है।
मैं हृदय से “नेशनल प्रेस टाइम्स” का आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने इस प्रयास को मंच दिया। यह लेखन मेरे लिए एक भावनात्मक यात्रा है – बागपत की गहराई को समझने और उसे दुनिया के सामने प्रस्तुत करने की विनम्र कोशिश।
आप सभी का
– सुरेंद्र मलानिया
(कलम का एक सच्चा सिपाही)
खंड 1 से 17 तक – संक्षिप्त झलक:
खंड 1: बरनावा – बृहस्पति की तपोभूमि
जहाँ ऋषि बृहस्पति और गुरु द्रोणाचार्य की स्मृतियाँ हैं, महाभारत की परछाइयाँ हैं, और इतिहास की जड़ें आज भी जीवित हैं।
खंड 2: सिनौली – सभ्यता का नवोदित सूर्य जहाँ खुदाई में महाभारतकालीन रथ और मानव अस्थियाँ मिलीं – जिसने भारतीय इतिहास को पुनर्परिभाषित किया।
खंड 3: अमीननगर सराय – गुमनाम नायकों की सराय
जहाँ हर पत्थर पर बगावत की छाप है – यह गाँव स्वतंत्रता आंदोलन के अनकहे योद्धाओं की छाया में खड़ा है।
खंड 4: माया त्यागी कांड – न्याय की चीख जहाँ पुलिस की बर्बरता ने पूरे देश को झकझोर दिया, और चौधरी चरण सिंह जैसे नेताओं ने व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया।
खंड 5: चौधरी चरण सिंह – ज़मीन से उठे महामानव बागपत की माटी से दिल्ली तक पहुँचे किसान नेता, जिनकी नीतियाँ आज भी कृषि क्षेत्र की प्रेरणा हैं।
खंड 6: बसौद – ज्वालामुखी क्रांति का गांव जहाँ से ‘दिल्ली चलो’ की गूंज उठी, जहाँ जामा मस्जिद में क्रांति के लिए रसद जमा हुई, और जहां रक्त से तालाब लाल हुए।
खंड 7: बिजरौल – शाहमल की जन्मभूमि बाबा शाहमल का गांव – जहाँ उन्होंने अन्याय के विरुद्ध विद्रोह की चिंगारी जलाई और इतिहास में अमर हो गए।
खंड 8: बागपत – जनपद का जन्म जहाँ सदियों की यात्रा के बाद बागपत एक जनपद बना – प्रशासनिक रूप से सशक्त और सांस्कृतिक रूप से विशिष्ट।
खंड 9: मलकपुर – परंपरा और प्रतिरोध का प्रतीक जहाँ स्वतंत्रता सेनानियों ने जनमानस को जगाया और संस्कृति को जीवित रखा।
खंड 10: जौहड़ी – जल, जंगल और जागरूकता का संगम
जहाँ पर्यावरण के संरक्षण, सामाजिक चेतना और परंपरा का गहरा मेल है।
खंड 11: तिलवाड़ा – शौर्य और शहीदी का गाँव जहाँ के वीरों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए – यह गाँव बलिदान की मिसाल है।
खंड 12: कोताना – किसान आंदोलनों की पवित्र भूमि जहाँ किसान आंदोलनों की चिंगारी धधकी और सामाजिक एकता की शक्ति दिखी।
खंड 13: खेकड़ा – बौद्धिक और सांस्कृतिक चेतना का केन्द्र जहाँ शिक्षा, साहित्य और क्रांति साथ चलते हैं – खेकड़ा एक वैचारिक भूमि है।
खंड 14: बिनौली – आध्यात्म और आत्मबल का गांव
जहाँ संतों, शिक्षकों और समाजसेवियों की पीढ़ियाँ बागपत को दिशा देती रही हैं।
खंड 15: टयोढ़ी – क्रांति की खामोश प्रयोगशाला जहाँ संघर्ष मौन था, लेकिन उसका प्रभाव गहरा – यह गाँव आंदोलनों की रणनीति का केन्द्र बना।
खंड 16: दोघट – संगठन और सामाजिक चेतना की धरा जहाँ पंचायत, सहकारिता और जनआंदोलन की मिसालें पनपीं।
खंड 17: सरूरपुर – स्वाभिमान और स्वराज की मिट्टी
जहाँ स्वराज की पुकार गूँजी, और स्वाभिमान की जड़ों ने विदेशी हुकूमत को चुनौती दी।
मैं बागपत हूँ – खंड 18
शिकोहपुर – साहस, शब्द और शहादत की भूमि
“गाँव वही नहीं होते जो सिर्फ खेतों में उगते हैं,
कुछ गाँव इतिहास के पन्नों में सीने पर ज़ख्म लिए पलते हैं।”
बागपत की धरती पर बहुत से गाँव हैं – कुछ ने मिट्टी की महक से इतिहास लिखा, और कुछ ने लहू की धार से। लेकिन एक गाँव है शिकोहपुर, जिसने साहस, शब्द और शहादत – तीनों से अपने अस्तित्व की माटी को महकाया है। यह गाँव कोई साधारण भूखंड नहीं, बल्कि मूल्य, संघर्ष और आत्मसम्मान का जीवंत प्रतीक है।
गाँव की स्थापना – एक इतिहास, एक पहचान
शिकोहपुर की स्थापना को लेकर कई स्थानीय जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं। माना जाता है कि यह गाँव मुग़लकालीन दौर में बसा, और इसके नाम की उत्पत्ति दारा शिकोह जैसे किसी ऐतिहासिक संदर्भ से जुड़ी है। लेकिन यह गाँव उस नाम से कहीं अधिक बड़ा है – यह गाँव जाट अस्मिता, कृषि संस्कृति और राष्ट्रप्रेम की भावना का सशक्त केंद्र रहा है।
यहाँ की धरती पर खेतों से अधिक जज़्बे उगे हैं। बड़ौत, बसौद, बिजरौल, और बड़का जैसे पड़ोसी गांवों के बीच शिकोहपुर हमेशा से एक संघर्षशील आत्मा की तरह खड़ा रहा।
1857 की क्रांति और शिकोहपुर की चेतना
1857 की क्रांति जब उत्तर भारत की धमनियों में बारूद बनकर दौड़ रही थी, तब बागपत के कई गांवों ने उसमें भागीदारी की। बिजरौल, बसौद, बड़का और बड़ौत की तरह शिकोहपुर भी उस आग की आंच से अछूता न रहा।
गाँव के बुज़ुर्ग बताते हैं कि शिकोहपुर के युवाओं ने ब्रिटिश अत्याचार के विरुद्ध स्थानीय संगठनों में भाग लिया था। भले ही अंग्रेजी दस्तावेज़ों में शिकोहपुर का नाम ना हो, लेकिन जनश्रुति और जनआस्था में यह गाँव गुप्त क्रांतिकारियों की शरणस्थली रहा है। यह गाँव गुमनाम वीरों की अस्थियों को अब भी अपने सीने में लिए सोया है, जिनका कोई शिलालेख नहीं, लेकिन इतिहास की आत्मा जानती है कि वे कौन थे।
ओमवीर शिकोहपुर – एक अकेले की हुंकार
सन 1980 में जब देश लोकतंत्र के खोल में ढका हुआ तंत्रवाद देख रहा था, तब बागपत में माया त्यागी कांड हुआ। एक गर्भवती महिला को पुलिस ने नग्न कर सरेआम घसीटा, और भीड़ तमाशबीन थी।
लेकिन उस तमाशे में एक चेहरा गुस्से से लाल, आँखों में आग, और दिल में इंसानियत की चीख लिए खड़ा हो गया – ओमवीर शिकोहपुर।
उसी भीड़ में खड़ा वह युवक आगे बढ़ा, अपने कंधे की शर्ट उतारी, माया को ढका, और पुलिस से भिड़ गया। पुलिस ने उस पर जमकर लाठियां बरसाई, उसे घसीटा गया, गिरफ्तार हुआ… लेकिन उसने एक गर्भवती स्त्री की अस्मिता को ढक कर उस दिन पूरे देश की आत्मा को जगा दिया।
उसका साहस एक आँधी बनकर उठा – संसद में गूंजा, अख़बारों में छपा, और शिकोहपुर नाम राष्ट्रीय चेतना में साहस के प्रतीक के रूप में दर्ज हो गया।
पृथ्वी सिंह ‘बेधड़क’ – शब्दों का सिपाही इसी गाँव से
शब्दों से चोट देने वाले कम नहीं, लेकिन शब्दों से जख्म सीने वाले कवि बहुत दुर्लभ होते हैं।
शिकोहपुर के इसी धरती ने जन्म दिया पृथ्वी सिंह ‘बेधड़क’ जैसे कवि को, जिनके काव्य में लोक की पीड़ा, किसान का आर्तनाद और मातृभूमि की पुकार एक साथ झलकती है।
“धरती रोई थी उस दिन, जब बेटा शहीद हुआ था,
लेकिन माँ ने आँखें पोंछकर कहा – मेरा बेटा समाज के काम आया है।”
‘बेधड़क’ की कविताओं ने मंचों पर केवल तालियाँ ही नहीं बटोरीं, बल्कि किसानों, श्रमिकों और नारी शक्ति की आवाज़ बन गईं। उनका नाम अब भी बागपत की साहित्यिक आत्मा की एक अमिट पहचान है।
भावना का अवसान नहीं, पुनर्जन्म है यहाँ
शिकोहपुर केवल इतिहास की एक गली नहीं है। यह एक प्रेरणा की चौपाल है, जहाँ ओमवीर की ललकार अब भी हवाओं में तैरती है, और ‘बेधड़क’ की कविता बच्चों की जुबान पर तैरती है।
यहाँ की मिट्टी केवल आलू या गन्ना नहीं उगाती, यह हिम्मत, हक़ और हौंसले भी उगाती है।
नमन है उस मिट्टी को…
जहाँ 1857 में तलवारें गुप्त रूप से चमकीं,
जहाँ 1980 में एक युवक ने सरेआम ललकारा,
जहाँ कवि ने शब्दों से पसीने को अमर बना दिया…
मैं बागपत हूँ,
और शिकोहपुर मेरी आत्मा में
एक गरजते सूरज की तरह धड़कता है।