कृषक मित्रों की हड़ताल पांचवें दिन भी जारी

नेशनल प्रेस टाइम्स, ब्यूरो ।
पथरगामा(गोड्डा) : झारखंड के हजारों कृषक मित्र अपनी वर्षों पुरानी उपेक्षा और अनदेखी के खिलाफ 27 मई से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे हैं। मांग है। सम्मानजनक मानदेय, जो आज तक उन्हें नहीं मिला। आंदोलन अब पूरे प्रदेश में फैलता जा रहा है और सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। प्रदेश अध्यक्ष शशि कुमार भगत ने प्रेस को बताया कि आज विभागीय निदेशक के निर्देश पर जिलास्तरीय अधिकारियों ने उनसे बैठक की और हड़ताल समाप्त करने का आग्रह किया, लेकिन बातचीत नतीजे तक नहीं पहुंच सकी। कृषक मित्र अपनी मूल मांग पर अडिग हैं। उन्होंने बताया कि बीते 15 वर्षों से कृषक मित्र केवल कृषि विभाग ही नहीं, बल्कि भूमि संरक्षण, सहकारिता, आत्मा परियोजना, मनरेगा, आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य, पशुपालन और मत्स्य जैसे अनेक विभागों के कार्यों में निःस्वार्थ योगदान दे रहे हैं। इसके बावजूद इन्हें कोई स्थायी या सम्मानजनक मानदेय नहीं मिला। हमसे हर विभाग काम करवाता है, लेकिन जब मानदेय की बात आती है तो कोई जिम्मेदारी नहीं लेता। विभागों का केवल आदेश आता है, पर अधिकार और सुविधा कुछ नहीं।
शशि कुमार भगत ने कहा कि जब मानदेय के लिए केंद्र सरकार से संपर्क किया जाता है, तो वहां से कहा जाता है कि ‘हमने तो कृषक मित्रों से कोई काम ही नहीं लिया’। वहीं राज्य सरकार इसे ‘केंद्र प्रायोजित योजना’ बता कर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है। कृषक मित्र आज असमंजस में हैं.. जाएं तो कहां जाएं? राज्य कहता है केंद्र की योजना है, और केंद्र कहता है हमने तो काम लिया ही नहीं।” अध्यक्ष ने यह भी कहा कि अधिकांश कृषक मित्रों की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय हो चुकी है। स्थिति यह हो गई है कि कई साथी अपने बच्चों की स्कूल फीस तक समय पर नहीं भर पा रहे हैं। घर चलाना भी चुनौती बन गया है। इस आंदोलन ने न केवल प्रशासन को सोचने पर मजबूर कर दिया है, बल्कि राज्य के कृषि तंत्र को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है। जब सरकार कृषि क्षेत्र को सशक्त बनाने की बातें कर रही है, उस समय इसकी नींव में खड़े कृषक मित्रों की उपेक्षा किसी विडंबना से कम नहीं। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार कृषक मित्रों की मांगों को कितनी गंभीरता से लेती है और क्या कोई ठोस समाधान सामने आता है या यह आंदोलन और तेज होगा।