पानी की किल्लत जूझ रही कोयल खुद की जनता, आज तक नहीं हुए विधायक के दर्शन

नेशनल प्रेस टाइम्स, ब्यूरो ।
सिंगरौली। मध्य प्रदेश ऊर्जा की राजधानी के रूप में पहचाने जाने वाले सिंगरौली जिले की तस्वीर आज बेहद चिंताजनक है। खासकर देवसर विधानसभा क्षेत्र के कोयल खुद की हालत ऐसी है कि आम जनता बुनियादी सुविधाओं के लिए त्राहि-त्राहि कर रही है। क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है पानी की किल्लत। भीषण गर्मी के बीच लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि जनता द्वारा भारी बहुमत से चुने गए भाजपा विधायक राजेन्द्र मेश्राम चार दीवारों के भीतर एसी की ठंडक में आराम फरमा रहे हैं।
पानी के लिए दर-दर भटक रहे लोग ?
ग्राम पंचायत कोयल खुथ सहित आसपास के कई ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी की स्थिति भयावह हो चुकी है। लोगों को कई किलोमीटर दूर तक जाकर पानी भरकर लाना पड़ रहा है। नदी-नालों, पुराने हैंडपंपों और पोखरों पर अब भी लोगों की निर्भरता बनी हुई है। नहाने की बात तो दूर, पीने के लिए साफ पानी मिलना भी किसी सपने जैसा हो गया है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि एक साल से अधिक समय हो गया, कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला गया। गर्मियों में जब तापमान 45 डिग्री के करीब पहुंच जाता है, तब ग्रामीण अपने सिर पर पानी के डिब्बे लेकर कई किलोमीटर दूर तक सफर करते हैं। महिलाएं और बुजुर्ग सबसे अधिक परेशान हैं, बच्चों की सेहत भी खतरे में है।
“एसी में मस्त है विधायक, आज नहीं हुए दर्शन ?
ग्रामीणों का आरोप है कि देवसर विधायक राजेन्द्र मेश्राम को जनता की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है। वे सोशल मीडिया पर फोटो खिंचवाने और कार्यक्रमों में मंच साझा करने में इतने व्यस्त हैं कि अपने ही क्षेत्र के हालातों पर ध्यान नहीं दे रहे। जनता कह रही है कि विधायक महोदय कभी क्षेत्र का दौरा तक नहीं करते, न ही जनता से मिलने की फुर्सत है। लोगों का आरोप है कि विधायक महोदय कंपनियों से साठगांठ कर प्रधानमंत्री की योजनाओं का गुणगान तो करते हैं, लेकिन अपने ही क्षेत्र की दुर्दशा पर आंखें मूंदे बैठे हैं। जिन योजनाओं की वाहवाही की जाती है, वे जमीन पर कहीं नजर नहीं आ रही हैं।
“सत्ता का नशा, जनता से दूरी”…?
जनता ने कहा कि विधायक बनने के पहले जो वादे किए गए थे, वे सब सिर्फ चुनावी जुमले बनकर रह गए हैं। विधायक बनने के बाद उन्होंने आम जनमानस से मिलना भी बंद कर दिया है। लोग खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। गांव-गांव में आक्रोश पनप रहा है कि आखिर जनता को वोट देने के बाद ऐसी उपेक्षा क्यों सहनी पड़ रही है।
जल संकट क्यों नहीं जाग रहा प्रशासन…?
यह स्थिति केवल सामाजिक या राजनीतिक नहीं, बल्कि मानवीय संकट बन चुकी है। स्थानीय प्रशासन भी इस गंभीर समस्या पर मौन नजर आ रहा है। लोगों को उम्मीद थी कि अमृत जल योजना और नल-जल योजनाओं के माध्यम से गांवों में सुधार आएगा, लेकिन जमीनी हकीकत में अधूरे पाइपलाइन, खराब मोटर और बंद टंकियां ही दिखाई दे रही हैं। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र कोई समाधान नहीं निकाला गया तो वे आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। उन्होंने यह भी मांग की है कि क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति को प्राथमिकता दी जाए, टैंकरों की व्यवस्था हो, और स्थायी जलस्रोतों को पुनर्जीवित किया जाए…?