बरेलीमनोरंजन

रिद्धिमा में मुशायरे की शाम बज्म ए सुखन का आयोजन

…तब कहीं जाके थोड़ा सुकूं पाती है मां
या—–
…मुझ पे भी आज मर गया कोई

शायरों ने इश्क-मुहब्बत के साथ मानवीय पहलुओं पर पढ़े कलाम

नेशनल प्रेस टाइम्स,ब्यूरो।

बरेली। श्रीराम मूर्ति स्मारक रिद्धिमा में रविवार (1 जून 2025) को मुशायिरे की शाम बज्म ए सुखन का आयोजन हुआ। इसमें बरेली और आसपास के शायरों ने अपने कलाम से इश्क और मुहब्बत का तो जिक्र किया ही, अपने शेर में बच्चों की जिम्मेदारियां पूरा करते बूढ़े होते मां-बाप के अनछुई व्यथा का भी जिक्र किया।
कार्यक्रम का आगाज शायर मोहम्मद मुदस्सर हुसैन उर्फ गुलरेज तुराबी ने अपने कलाम ‘वो घबराता है क्यूं खंजर नहीं हैं, अकेला ही तो हूं लश्कर नहीं है’ से किया। उन्होंने शेर ‘तुझे जो इम्तहां लेना है लेले मेरा भी हौसला कमतर नहीं है’ से खूब तालियां बटोरीं। शायर हाली अब्बास जैदी उर्फ हानी बरेलवी ने शेर ‘देर तक उंगलियां निहारूं मैं, तेरी जुल्फों को जब संवारूं मैं’ से अपना कलाम शुरू किया। जिसके अंत में उन्होंने ‘मैं किसी को बुरा कहूं कैसे, पहले खुद को सुधारूं मैं’ शेर से किया। आसिफ हुसैन रिजवी उर्फ शायर समीर भाई ने बच्चों को पालने की जिम्मेदारियां पूरी करते करते बुजुर्ग होते मां-बाप की दुश्वारियों का जिक्र किया। उन्होंने इसके लिए प्रोफ़ेसर हुसैन अनसारीयान का कलाम पढ़ा। जिसमें पहला शेर ‘मौत के आगोश में थक के सो जाती है मां, तब कहीं जाके थोड़ा सुकूं पाती है मां’ और अंतिम शेर ‘बाद मर जाने के फिर बेटे की खि़दमत के लिए, भेस बेटी का बदल कर घर में आ जाती है मां’ तक पहुंचते पहुंचते शायरी के कद्रदानों की काफी तालियां बटोरीं। आसिफ ने अपने कलाम में बाप का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा ‘मैं बाप हूं मैने ख्वाब बेचे, तू ख्वाब सबके खरीद लाया’ और ‘मुझे जो बदले में मिल रहा है, सिला ये क्या है मकाम क्या है’। शायरा रिजवाना बी ने ‘यहां बैठा हर शख्स मायने रखता है, इधर देखूं, उधर देखूं, जिधर देखूं मुझे छोटा हिंदुस्तान लगता है’ कलाम पढ़ कर सामाजिक एकता का संदेश दिया। खैराबाद के शायर अफजल यूसुफ ने ‘तकदीर ने एक ऐसे घर में पाला है, एक ओर जहां मस्जिद एक ओर शिवाला है’ शेर से अपना कलाम पढ़ना शुरू किया। इस कलाम में शेर ‘दोनों ही बराबर हैं अफजल की नजर में, उर्दू है अगर अम्मी तो हिंदी मेरी खाला है’ से उन्होंने हिंदी और उर्दू के एक होने का भी संदेश दिया। शायर जीशान हैदर ने अपने कलाम के पहले शेर ‘हद से शायद गुजर गया कोई, मुझपे भी आज मर गया कोई’ पढ़ कर महफिल में इश्क और मुहब्बत की फुहार छोड़ी। जीशन ने शेर ‘तुम तो बेहद शरीफ थे जीशान, तुम पे करके असर गया कोई’ से अपने कलाम को खत्म किया। शायर सज्जाद हैदर ने शेर ‘इस आबरू के सहारे अभी भी जिंदा हैं, कि जांनिसार अभी भी जिंदा हैं’ से अपने कलाम का आगाज किया। फिर उन्होंने ‘निगल गई हैं हवाएं न जाने कितने चिराग, खुदा का शुक्र, उजाले अब भी जिंदा हैं’, ‘जब तलक मां-बाप की आगेश में पलता रहा, धूप वो सहते रहे मैं साए में चलता रहा’ सहित कुछ और भी शेर पढ़ कर कद्रदानों की वाहवाही हासिल की। मुशायरे की शाम बज्म ए सुखन का संचालन डा.अनुज कुमार ने किया। इस मौके पर एसआरएमएस ट्रस्ट के संस्थापक व चेयरमैन देव मूर्ति जी, आशा मूर्ति जी, डा.रजनी अग्रवाल, सुभाष मेहरा, डा. एमएस बुटोला, डा.प्रभाकर गुप्ता, डा.शैलेश सक्सेना, डा.शरद जौहरी, डा.पीके परडल, डा. विद्या नंद, दीपेंद्र कमथान सहित शहर के गणमान्य लोग मौजूद रहे।

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