सिंगरौली

 श्रमिक ने लगाया आरोप “पैसा नहीं दिया तो नौकरी से निकाला!”, श्रम कानून की खुली अवहेलना

नेशनल प्रेस टाइम्स, ब्यूरो।

सिंगरौली । सिंगरौली जिले के देवसर क्षेत्र में श्रमिकों के शोषण की एक और चौंकाने वाली घटना सामने आई है। चार महीने तक लगातार ड्यूटी करने के बाद एक युवक को अचानक कंपनी से निकाल दिया गया वो भी बिना किसी पूर्व सूचना या लिखित जानकारी के। आरोप है कि केवल इसीलिए निकाला गया क्योंकि उसने किसी “संबंधित व्यक्ति” को 40 हजार रुपये नहीं दिए। पीड़ित युवक ने बताया कि वह बंधा क्षेत्र अंतर्गत टीएचडीसी के अंदर काम करने वाली वेंडर कंपनी डेको कंपनी में कार्यरत था। वहाँ से निकाल दिए जाने के बाद मै मजबूरी में बैंगलोर जाकर काम कर रहा हूँ। जब कि उसका परिवार सिंगरौली में है, पत्नी गर्भवती है, और इस मुश्किल वक्त में उसे साथ की सबसे ज्यादा ज़रूरत है। मगर एक संगठित भ्रष्ट सिस्टम और कथित दबंगों की गुंडागर्दी के चलते वह अपनों से दूर कमाने को मजबूर है।

यह कौन-सा कानून है?

बिना नोटिस, बिना कारण, केवल पैसों के लेनदेन के आधार पर किसी को नौकरी से निकाल देना यह किसी भी श्रम कानून में जायज़ नहीं है। यह सीधे-सीधे श्रम कानून 1976, औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 और स्थायी आदेश अधिनियम का उल्लंघन है।

सत्ता की आड़ में शोषण?

स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह सब एक संगठित गिरोह की तरह हो रहा है, जो सत्ता के संरक्षण में काम कर रहा है। पैसा नहीं दिया तो “ताकत लगा लो” जैसी धमकियां मिलती हैं, और गुंडागर्दी के दम पर लोगों की नौकरियां छीनी जा रही हैं। बताया जा रहा है कि बंधा क्षेत्र में बाहरी लोग आकर अवैध धंधा कर रहे हैं। विस्थापितों को रोजगार देने के बजाय बाहरी व्यक्तियों की भर्ती हो रही है। कलिंगा क्षेत्र में भी अवैध नियुक्तियों का आरोप लग चुका है। वर्करों ने आरोप लगाया है कि माइंस में मजदूरी दरें कम कर दी गई हैं, और वेतन से भी अवैध कटौती की जा रही है। कोई सुनवाई नहीं हो रही, और जो आवाज़ उठाता है, उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है।

यह मामला सिंगरौली जिले में व्याप्त श्रमिक शोषण और संगठित भ्रष्टाचार की गंभीर स्थिति को उजागर करता है। ज़रूरत है कि प्रशासन, श्रम विभाग और राजनीतिक नेतृत्व इस पर गंभीरता से ध्यान दें और दोषियों पर सख्त कार्यवाही हो।

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