बागपत

वक्फ संशोधन और पसमांदा भागीदारी

न्याय, पारदर्शिता और समावेशन की ओर एक निर्णायक पहल

नेशनल प्रेस टाइम्स,ब्यूरो।

बागपत : संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी), जो वर्तमान में वक्फ (संशोधन) विधेयक की जांच कर रही है, ने गुरुवार, 30 जनवरी 2025 को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। इस रिपोर्ट में समिति ने कुछ अहम संशोधनों की सिफारिश की है, जिनमें वंचित और पिछड़े मुसलमानों—पसमांदा समुदाय—को वक्फ की निर्णय प्रक्रिया में प्रभावी रूप से शामिल करने की बात प्रमुख रूप से शामिल है।

भारत में वक्फ संपत्तियाँ मुस्लिम समुदाय के धार्मिक, शैक्षणिक और सामाजिक जीवन का आधार रही हैं, लेकिन इन संपत्तियों के प्रबंधन में लंबे समय से भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और पारदर्शिता की कमी जैसी समस्याएं सामने आती रही हैं। खासकर, पसमांदा मुसलमानों को वक्फ प्रशासन और इसके लाभों से ऐतिहासिक रूप से बाहर रखा गया है। यह बहिष्कार केवल प्रतिनिधित्व की कमी नहीं है, बल्कि यह सामाजिक-आर्थिक असमानता को और गहरा करता है।

वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन, जैसे कि संपत्तियों की वैधता के लिए दस्तावेजी साक्ष्य की अनिवार्यता और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की भागीदारी का सुझाव, शासन प्रणाली को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने का प्रयास हैं। इन्हीं के साथ यदि पसमांदा मुसलमानों के लिए भी ठोस प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाता है, तो यह सुधार अधिक व्यापक और प्रभावशाली सिद्ध होगा।

प्रमुख सुझाव इस प्रकार हैं:

  1. वक्फ बोर्डों में पसमांदा आरक्षण: राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर वक्फ बोर्डों में पसमांदा मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटें अनिवार्य की जाएं ताकि वे नीति निर्माण और निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी कर सकें।
  2. सख्त प्रबंधन दिशा-निर्देश: यह सुनिश्चित किया जाए कि वक्फ संपत्तियों का उपयोग मुस्लिम समुदाय के सभी वर्गों—विशेषकर वंचित तबकों—के हित में हो।
  3. नियमित ऑडिट और निगरानी: स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा वक्फ संपत्तियों की नियमित ऑडिटिंग की व्यवस्था हो, जिसमें पसमांदा प्रतिनिधियों की भागीदारी अनिवार्य हो।
  4. पसमांदा विकास हेतु निधि आवंटन: वक्फ आय का एक निश्चित हिस्सा पसमांदा समुदाय की शिक्षा, व्यवसाय और सामाजिक उत्थान के लिए नियोजित किया जाए।

पसमांदा मुसलमान, जो संख्या में भारत के मुस्लिम समुदाय का बड़ा हिस्सा हैं, प्रशासनिक संरचनाओं से बाहर रखे जाने के कारण आज भी गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक पिछड़ेपन से जूझ रहे हैं। यदि उन्हें वक्फ शासन में भागीदार बनाया जाता है, तो वे न केवल अपने अधिकारों के लिए सजग प्रहरी बन सकते हैं, बल्कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और व्यवस्था में पारदर्शिता लाने में सहायक भी बन सकते हैं।

यह कदम इस्लाम के न्याय और समावेशन के सिद्धांतों के भी अनुरूप होगा, जहाँ किसी भी वर्ग या जाति के आधार पर भेदभाव का स्थान नहीं है।

अंततः, वक्फ अधिनियम में पसमांदा मुसलमानों के समावेश का यह प्रयास महज़ एक कानूनी सुधार नहीं, बल्कि एक नैतिक, सामाजिक और लोकतांत्रिक दायित्व की पूर्ति है। यह न केवल एक निष्पक्ष व्यवस्था का निर्माण करेगा, बल्कि भारत के बहुलतावादी ताने-बाने को और अधिक मजबूत भी करेगा।

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