सरना धर्म कोड को लेकर 9 मई को आयोजित होगी झामुमो का राज्यव्यापी धरना प्रदर्शन

एनपीटी,
झारखण्ड में जातीय जनगणना का मामला सरना धर्म कोड की मान्यता को लेकर बड़े विवाद में फंस गया है। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने साफ कर दिया है कि जब तक केन्द्र सरकार सरना धर्म कोड को मान्यता नहीं देती, तब तक राज्य में जातीय जनगणना की अनुमति नहीं दी जायेगी। पार्टी के महासचिव विनोद पांडे ने यह स्पष्ट किया कि झामुमो इस मुद्दे को झारखण्ड की अस्मिता और पहचान से जुड़ा हुआ मानता है। इसी मुद्दे को लेकर झामुमो की ओर से 9 मई 2025 शुक्रवार को राज्यव्यापी आन्दोलन की घोषणा की गई है। इस दिन झारखण्ड के सभी जिला मुख्यालयों पर एक दिवसीय धरना प्रदर्शन आयोजित किया जायेगा। पार्टी ने अपने सभी जिला स्तरीय पदाधिकारियों को इस आन्दोलन की तैयारी के निर्देश दे दिया है। प्रदर्शन का उद्देश्य केन्द्र सरकार का ध्यान सरना धर्म कोड की मांग की ओर आकृष्ट करना है। सरना धर्म के अनुयायी मुख्यतः आदिवासी समुदाय से आते हैं और ये प्रकृति पूजा में विश्वास रखते हैं। ये समुदाय स्वयं को हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं मानते और लंबे समय से जनगणना के धर्म कॉलम में “सरना” के लिए अलग पहचान की मांग कर रहे हैं। झारखण्ड विधानसभा ने इस सम्बन्ध में 11 नवंबर 2020 को एक विशेष सत्र आयोजित कर सर्वसम्मति से “सरना धर्म कोड” के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया था, जिसे बाद में केन्द्र सरकार को भेजा गया था। हालांकि, इस प्रस्ताव को केन्द्र सरकार की ओर से अब तक कोई मंजूरी नहीं मिली है। झामुमो का कहना है कि जब आदिवासियों की धार्मिक पहचान ही जनगणना में मान्य नहीं होगी, तो जातीय जनगणना का कोई औचित्य नहीं रह जाता। महासचिव विनोद पांडे ने कहा कि पिछले पांच वर्षों से यह मुद्दा लंबित है और केन्द्र सरकार झारखण्ड की सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी इस अहम मांग को नजरअंदाज कर रही है। झामुमो ने केन्द्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए आन्दोलन को तेज करने की रणनीति बनाई है। 9 मई 2025 को होने वाले राज्यव्यापी धरना प्रदर्शन के माध्यम से पार्टी जनभावनाओं को प्रकट करेगी और सरना धर्म कोड की मान्यता की मांग को और मुखर करेगी। पार्टी नेताओं ने कहा है कि यह आन्दोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक आदिवासी समाज की धार्मिक पहचान को संवैधानिक रूप से मान्यता नहीं मिल जाती।