अमरोहा

वक्त से आंख मिलाने की हिमाकत न करो, वक्त इंसान को नीलाम भी कर देता है

उझारी में ऑल इंडिया मुशायरे का आयोजन

नेशनल प्रेस टाइम्स, ब्यूरो
उझारी। नगर में चल रहे हजरत शेख दाऊद बंदगी रहमतुल्ला अलेह के उर्स के अवसर पर ऑल इंडिया मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसका शुभारंभ हुमायूं साबिर, शबाहत अली, नासिर अली एडवोकेट आदि ने संयुक्त रूप से शमाअ रोशन करके किया।
शमा रोशन के पश्चात सर्वप्रथम अल्ताफ जिया ने नाते पाक पढ़ते हुए कहा- मेरा दावा है हर मंजर सुहाना भूल जाएगा, मदीना देखने वाला जमाना भूल जाएगा।
वारिस वारसी ने अपना कलाम पेश करते हुए कहा- जब लोग इत्तेहाद के सांचे में ढल गए, फिर यूं हुआ चिराग हवाओं में जल गए।
अराफात संभली ने कहा- क्यों नई दुनिया बसाऐं आपके होते हुए, क्यों किसी से दिल लगाऐं आपके होते हुए।
मोहतरमा मेहनाज स्योहारवी ने इस तरह पढ़ा- लब सिले हैं मगर मेरे आंसू जुल्म की दास्तां कह रहे हैं, हमने उन पर भरोसा किया था अब जहां के सितम सह रहे हैं।
बाराबंकी से पधारे अली बाराबंकवी ने कहा- मैं सदाकत की हवेली में भटकता ही रहा, वह सरासर झूठ बोला और रहबर हो गया।
अल्तमश अब्बास ने कुछ यूं कहा- इश्क करते हो खसारों की तरफ मत देखो, दो कदम चल के सहारों की तरफ मत देखो।
नदीम शाद देवबंदी ने कहा- ख्वाब जो पूरे करने हैं तो जुर्रत करनी पड़ती है, किस्मत भी होती है लेकिन मेहनत करनी पड़ती है।
मालेगांव महाराष्ट्र से तफरीफ लाए अल्ताफ जिया ने कहा- मैं इसी रास्ते से गुजरूंगा, रहज़न को पता चला कैसे, हम में मूसा नहीं कोई मौजूद, बनता दरिया में रास्ता कैसे।
उबेद मैरठी ने कहा- कैद में तो थे हे सो खतावार हो गए, मजबूरियां थी इतनी के गुनहगार हो गए।
मोहतरमा शबीना अदीब ने इस तरह पढ़ा- कभी तुम्हारे सितम के आगे मेरी जबीं खम न हो सकेगी, खुदा के दरबार के अलावा कहीं भी यह सर झुका नहीं है।
नदीम फर्रुख ने कहा- वक्त से आंख मिलाने की हिमाकत न करो, वक्त इंसान को नीलाम भी कर देता है।
खुर्शीद हैदर मुजफ्फर नगरी ने कहा- बेटा मेरा परदेश कमाने को गया है, मय्यत को उठाने में ज़रा देर लगेगी।
अंदाज देहलवी ने अपना कलाम पेश करते हुए कहा- यह सोच ले मुझ पर किसी इल्जाम से पहले, आएगा तेरा नाम मेरे नाम से पहले। हास्य व्यंग के शेयर सज्जाद झंझट ने भी अपना कलाम पेश किया- एक दिन कर बैठा जुर्म ए इश्क मैं, अपनी थाने में हजामत हो गई, इत्तेफाकन जज भी था आशिक मिजाज, इसलिए मेरी जमानत हो गई।
इस अवसर पर मुख्य रूप से चौधरी बुद्धन, खालिद मसऊद, हकीम चमन, फहीमुददीन महल, इफ्तिखार उल हसन, मास्टर असद, मो० आदिल, मौ० आमिर, आफाक़ पठान, हाजी बब्बन, अलाउद्दीन सैफी, अतहर एहसान, डॉ० शहरोज मुख्तार, वहाबुद्दीन, कुंवर अदनान महल, कोकब इकतेदार, राशिद अली, अबसार अहमद, फहीम वारिस, चौधरी अब्दुल कादिर, शाकिर मसऊदी, शहाबुद्दीन सैफी आदि बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे। अध्यक्षता मुजाहिद अली एडवोकेट ने तथा संचालन नदीम फर्रुख ने किया।
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