मोदीनगर

अब हमें भी बचा लो ‘सरकार’, कुछ हमें भी दे दो ‘अधिकार’।

एनपीटी मोदीनगर ब्यूरो

मोदीनगर। पिछले कुछ वर्षों से पुरुषों के द्वारा राष्ट्रीय पुरुष आयोग के गठन की मांग की जा रही है।
यह मांग दिल्ली, लखनऊ, रांची, एवं मेरठ जैसे शहरों से लगातार उठ रही हैं। लगातार महिलाओं द्वारा हो रहे पुरुषों पर उत्पीड़न ,आत्महत्याओं और हत्या की घटनाओ को देखते हुए इसकी मांग तेज हो गई है। देश में पत्नियों से प्रताड़ित पतियों की संख्या बढ़ती जा रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे देश में पिछले एक साल में लगभग 1 लाख 18 हजार पुरुषों ने आत्महत्या की है. इनमें से 84 हजार के लगभग विवाहित पुरुष थे, जो जिंदगी के संघर्ष से लड़ नहीं पाए। 33.2 प्रतिशत पुरुषों ने पारिवारिक समस्याओं के कारण और 4.8 प्रतिशत ने वैवाहिक कारणों से आत्महत्या की।

मोदीनगर के तलहेटा गॉव के रहने वाले किसान पुत्र शेखर त्यागी ने भारत सरकार से महिला आयोग की तरह ही पुरुष आयोग एवं पुरुष मंत्रालय बनाए जाने को लेकर पत्र लिखा है जिससे पीड़ित पुरुषों को भी इंसाफ मिल सके।

शेखर ने मर्द का दर्द बताते हुए कहा कि पुरुषों की आत्महत्या और घरेलू हिंसा से निपटने के लिए मानवाधिकार आयोग को भी निर्देश दिया जाना चाहिए। इसमें कुछ गलत नहीं है, लेकिन सवाल है कि ऐसा होगा कैसे? महिलाएं तो जैसे ही किसी प्रकरण में फंसती हैं, किसी न किसी ऐसे कानून का सहारा ले लेती हैं, जहां पुरुषों की कोई सुनवाई ही नहीं होती। बिना किसी जांच-परख के पुरुषों को दोषी मान लिया जाता है। कानून की यह कैसी प्रक्रिया है, जहां दूसरे पक्ष को अपनी बात कहने और अपने को सही साबित करने का अवसर ही प्रदान न किया जाए?

शेखर त्यागी ने कहा की एकपक्षीयता से निपटने के लिए पुरुष आयोग बनाना बहुत आवश्यक हो गया है। वैसे भी जब अपने यहां हर एक की समस्याओं के निपटान के लिए आयोग बना दिए जाते हैं तो पुरुषों के लिए ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? पुरुष आयोग हो तो पुरुषों को भी अपनी बात कहने का अवसर मिले। वे भी न्याय पा सकें। अपने यहां जैसे लैंगिक कानून हैं, उनमें बदलाव की भी सख्त आवश्यकता है। कानून हर पक्ष की बात सुने और जो दोषी हो, चाहे स्त्री या पुरुष उन्हें सजा दे। तभी कानून का महत्व भी सिद्ध हो सकता है

नेशनल प्रेस टाइम्स से बात करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता अतुल शर्मा कहती है महिलाएं लम्बे समय तक हाशिए पर रही थीं इसलिए उनके विकास के लिए तमाम कानून और आयोग बनाए गए लेकिन अब बहुत सारी महिलाएं उनका दुरुपयोग कर पुरुषों को प्रताड़ित कर रही हैं। आवश्यकता है कि एक बार फिर उन नियमों की समीक्षा की जाए तथा कुछ ऐसे भी नए कानून बनें कि पुरुषों के साथ न्याय हो सके।

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