ब्रह्मा कुमारीज केंद्र में सप्त दिवसीय गीता ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन गीता प्रवचन

एनपीटी बूंदी ब्यरो
बूंदी! श्रेष्ठ कर्मों के द्वारा पुण्य अर्जित करें तब ही सच्ची शांति होगी: योग शक्ति गीता दीदी….*
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के तत्वाधान में तिरुपति विहार स्थित स्थानीय ब्रह्माकुमारीज केंद्र में सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा, गीता ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन के गीता प्रवचन में दिन डीन एन.एल. मीणा, कृषि विश्व विद्यालय हिंडोली , श्रीमती माया मीणा, रिलायंस फाउंडेशन जिला प्रभारी रामधन जाट , राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी गीता दीदी, कुसुमलता सिंह अध्यक्ष क्षमता संगठन बूंदी ने श्रीमद्भगवद्गीता की पूजा कर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलन किया एवं योग शक्ति गीता दीदी का स्वागत सम्मान किया ।
श्रीमदभगवत कथा गीता ज्ञान यज्ञ के पांचवे दिन के गीता प्रवचन देते योग शक्ति गीता दीदी ने दिव्य उद्बोधन देते हुए कहा कि मनुष्य के दुख का मूल कारण विकार है। मानव का आदि काल बहुत श्रेष्ठ था जब हम इस धरा पर आए तो वह समय शक्तियों का था मानव देव स्वरूप में था धीरे-धीरे समय के परिवर्तन के साथ सतयुग से त्रेता युग का समय आया तब भी मानव में पवित्रता सुख शांति आनंद खुशी से सम्पन्न था। इस कालचक्र में यह आधा समय स्वर्ग कहलाता था, जब द्वापर युग प्रारंभ हुआ तो मानव में 16 कला से आठ कला रह जाती है। तब मानव काम क्रोध लोभ मोह अहंकार आदि विकारों के वशीभूत हो गया, तब से इस संसार में पापाचार, भ्रष्टाचार, दुराचार, अत्याचार, बढ़ने लगे इससे बचाने के लिए संसार में धर्म गुरुओं के द्वारा शांति, प्रेम, अहिंसा, दया का पाठ पढ़ाया। आगे उन्होंने आत्मा रूपी सीता की रक्षा के बारे में बताते हुए कहा कि सभी देशों के मनुष्य के कृत्यों को देखकर आपको क्या लगता है यह कृत्य बढ़ेंगे या कम होंगे इस समय कोई मनुष्य किसी की रक्षा नहीं कर पा रहा है। इसलिए दिखाया है द्रोपदी के पांच-पांच पति थे। वीर थे, शक्तिशाली थे, द्रोपति की आत्मरक्षा नहीं कर सके। भगवान को पुकारा आत्मरक्षा के लिए। परमात्मा की शक्ति ही हमें उस समय से पार करा सकेगी। आत्मा की रक्षा आत्मा की पवित्रता की शक्ति से ही होती है, इसलिए आत्मा सीता के पास कोई शस्त्र नहीं होते भी रावण उसका कुछ नहीं कर सका। कलयुग अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है, जनसंख्या, विस्फोट बढ़ता प्रदूषण, प्राकृतिक असंतुलन, मिलावट, बनावट, भ्रष्टाचार, आदि अपनी चरम सीमा पर हैं। यह वह धर्म बनाने का समय आ गया है, जो गीता में वर्णित है। ऐसे में सृष्टि का उद्धार करने के लिए पतित पावन सर्व के सद्गति दाता शिवपिता इस धरा पर अवतरित होकर ईश्वरीय ज्ञान और सहज राजयोग सिखाते हैं। जिससे यह संसार कलियुग नर्क से बदलकर सतयुग स्वर्ग बनेगा। पतित पावन आसुरी से दैवी, दुखी से सुखी बनेगा।
कालचक्र का रहस्य समझाते हुए योग शक्ति गीता दीदी ने कहा कि इस कालचक्र को समझने से ही हम काल के भय से मुक्त हो पाते हैं। इस कालचक्र में यह सृष्टि का अंतिम समय चल रहा है, सृष्टि परिवर्तन की बेला में हम सभी मनुष्य आत्माओं को पुण्य अर्जित करना आवश्यक है। यह पुण्य कर्म ही मानव का सच्चा-सच्चा साथी होते हैं। यह हमारे साथ चलते हैं, इसे मनुष्य सृष्टि का वृक्ष कहा जाता है। वास्तव में यह कोई जरूरत नहीं है जिसके नीचे बैठने से मनुष्य की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। यह तो चेतन मनुष्य सृष्टि चक्र का ही झाड़ है इसका भी स्वयं परमपिता परमात्मा निराकार बीज है। इस कल्पवृक्ष का ज्ञान प्राप्त करने से ही मनुष्य सभी प्राथमिक इच्छाएं पूर्ण करता है। सुख और दुख का आधार उसके ही कर्म होते हैं। कर्मों की गति है जिसका फल हर एक मनुष्य को इसे मनुष्य जीवन भी घूमना पड़ता है। वास्तव में मनुष्य योनि ही भोगनाके योनि है। मनुष्य को ही सही प्रकार की भावना हरनी पड़ती है। जैसे आर्थिक, सामाजिक भोगना, मानसिक भोगना, शारीरिक भोगना, परमात्मा द्वारा हर कर्म का फल प्राप्त होता है। अन्य लोगों में इतनी परवाह नहीं है जितनी मनुष्य योनि में है। इसका मूल कारण महसूस करने की शक्ति का होना है, ताकि वह अपने पाप कर्मों के फल से महसूस कर सकें। पाप कर्म का फल कितना भयानक होता है। और आगे के लिए ऐसे पाप का नहीं करने की बहुत पीणा है। मनुष्य योनि ही सर्वश्रेष्ठ भी है। मानव अपने जीवन में श्रेष्ठ कर्मों के द्वारा पुण्य आत्मा बन अपना जीवन सफल कर सकता है। मनुष्य को अपनी अंतरात्मा की आवाज को अवश्य होना चाहिए क्योंकि यह हमारा सच्चा मित्र है।
श्रद्धालुओं ने भागवत कथा में बड़ी संख्या में भाग लेकर गीता जी के ज्ञान का रसपान कर आनंदित जीवन जीने की कला सीखी और स्वयं को परमात्मा की छत्रछाया में पाकर धन्य हो गए।