मेंढा विस्थापितों की बदहाली, प्रशासन ने मोड़ा मुंह, ताप्ती नदी से पानी ढोने मजबूर महिलाएं

नेशनल प्रेस टाइम्स ब्यूरो
मध्यप्रदेश बैतूल। भीषण गर्मी में मेंढा जलाशय से विस्थापित 40 से ज्यादा परिवार पानी की एक-एक बूंद के लिए ताप्ती नदी की खड़ी घाटी चढ़ने को मजबूर हैं। जनपद पंचायत भैंसदेही के टेमुरनी पंचायत में खेतों में बसे इन परिवारों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। महिलाएं सिर में गुंडिया रखकर तीन किलोमीटर दूर नदी से पानी ढोकर ला रही हैं, जिम्मेदारों के वातानुकूलित दफ्तरों में बैठे अफसरों को न तो ये तस्वीरें झकझोर रही हैं, न उनकी संवेदनाएं जाग रही हैं।
सरकार की नल जल योजना इन विस्थापितों के खेत तक नहीं पहुंच सकी। इन परिवारों की पूरी जिंदगी खेती पर टिकी है, लेकिन सबसे बुनियादी जरूरत पानी का कोई इंतजाम नहीं है। न टैंकर, न हेंडपंप, न पाइपलाइन। खेतों में बसे यह परिवार विकास से कोसों दूर हैं। रोज़मर्रा की ज़िंदगी की लड़ाई पानी से शुरू होती है और प्यास से टूटकर खत्म होती है।
ग्रामीण महिला उमराव, सुशीला, मनिता, फूलचंद, सरिता, ललिता और अनिता ने बताया कि छोटे-छोटे बच्चों के साथ भी उन्हें कई बार पानी के लिए 3 किलोमीटर दूर ताप्ती नदी जाना पड़ता है। शासन-प्रशासन से कई बार गुहार लगाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई।
समाजसेवी निखिल बावने लगातार इन ग्रामीणों की समस्या अधिकारियों के सामने रख चुके हैं। वे कई बार आवेदन, ज्ञापन और मुलाकातें कर चुके हैं, लेकिन कागज़ों पर चलती सरकार और जमीनी हकीकत में कोई मेल नहीं दिखता।
प्रशासन की चुप्पी अब मज़ाक बन चुकी है। एक तरफ करोड़ों के विकास कार्यों के दावे हैं, दूसरी तरफ खेतों में रहने वाली महिलाएं सिर पर पानी की गुंडिया लेकर ताप्ती नदी की घाटी चढ़ रही हैं। सवाल ये है कि आखिर ये कैसा विस्थापन है जो जीवन से भी बुनियादी अधिकार पानी तक छीन लेता है? समाजसेवी निखिल बावने ने प्रशासन से आग्रह किया कि इन ग्रामीणों की समस्या का शीघ्र समाधान किया जाए।