पाकुड़

पाकुड़ जिला के 31वें स्थापना दिवस में सपने अधूरे, हेमन्त सरकार 2.0 व डीसी मनीष कुमार पर टिकी हैं निगाहें,

एनपीटी पाकुड़ ब्यूरो,

पाकुड़ (झा०खं०), जिला पाकुड़ राजमहल संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है और यह जिला खनिज सम्पदा से भरे पड़े हैं। पाकुड़ को काले पत्थर की नगरी का शहर भी कहा जाता है। बताया जाता है कि पाकुड़ के उदार में उम्दा पंक्ति के पत्थर पाये जाते हैं जो सिर्फ और सिर्फ देश भर ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विशेष पहचान बना चुकी है जो गर्व की विषय है। स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1981 में संथाल परगना चार जिलों में विभाजित हो गया, अर्थात दुमका, देवघर, गोड्डा और साहिबगंज बना। पाकुड़ को साहिबगंज के साथ उप-विभाग के रूप में जोड़ा गया और वर्ष 1994 में इसे जिले के रूप में उन्नत किया गया। यहां धान की कुटाई, पर्चा बनाना, बांस की टोकरियां बनाना  व्यापारिक गतिविधियों के स्रोत रहा है। प्रमुख उद्योगों और रोजगार के अवसरों की अनुपस्थिति में आर्थिक विकल्प कृषि तक ही सीमित है। पत्थर के चिप्स, चावल की पिसाई, महुआ, सबई घास, तस्सर, बांस की सेटिंग जैसे वन उत्पाद उनकी व्यावसायिक गतिविधियों के स्रोत हैं। यहां धरनी पहाड़ फेमस है। यूं तो लगभग प्रायः समुदाय के निवासी हैं, लेकिन मूलतः संथाल और पहाड़िया पाकुड़ जिले के मुख्य निवासी है। संथाल जिले की अधिकांश आबादी को कवर करते हैं, हालांकि जिले में उनका वितरण एक समान नहीं है। उनका मुख्य जमावड़ा दामिन-ए-कोह में है जहां उनकी लगभग दो तिहाई आबादी रहती है। पहाड़िया इस क्षेत्र के सबसे पुराने निवासी हैं। झारखण्ड के पाकुड़ ज़िले में करीब 1,250 गांव है, साथ ही पाकुड़ ज़िले में छह ब्लॉक/अंचल है। इन ब्लॉक के नाम हैं – पाकुड़, अमरापाड़ा, लिट्टीपाड़ा, हिरणपुर, महेशपुर, और पाकुड़िया। पाकुड़ ज़िले में एक नगर पालिका है, जिसका नाम पाकुड़ नगर परिषद है। साथ ही पाकुड़ ज़िले में 128 ग्राम पंचायतें  के अलावे छह पंचायत समितियां हैं। पाकुड़ ज़िले में पहले साहिबगंज उप-विभाग का हिस्सा था। मगर बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की सरकार के द्वारा पाकुड़ ज़िले को 28 जनवरी 1994 में ज़िले के रूप में उन्नत किया गया था। अवलोकन पाकुड़ जिला पंचायत झारखण्ड राज्य का एक ग्रामीण स्थानीय निकाय है। पाकुड़ जिला पंचायत क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत करीब 6 पंचायत समितियां, 128 ग्राम पंचायतें और 1251 गांव है। आपको बता दे दुमका सदर, देवघर, जामताड़ा, गोड्डा, पाकुड़ और राजमहल। स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1981 में संथाल परगना चार जिलों में विभाजित हो गया, अर्थात दुमका, देवघर, गोड्डा और साहिबगंज बना और पाकुड़ को साहिबगंज के साथ उप-विभाग के रूप में रखा गया। मगर उस वक्त के चर्चित नेता रिलाक्स होटल के मालिक एकबाल हुसैन की प्रायस रंग लाया और 28  जनवरी 1994 में तत्कालीन लालू प्रसाद यादव की सरकार ने  जिला का स्वरूप दिया, जिसे स्थापना दिवस के रुप में मानाया जाना जगजाहिर है। पाकुड़ 28 जनवरी 1994 में जिला के रूप में स्थापित हुआ जोकि कोयला, पत्थर और बीड़ी बनाने के उद्योग के लिए प्रसिद्ध पाकुड़, नव निर्मित झारखण्ड राज्य के महत्वपूर्ण राजस्व अर्जित करने वाले जिलों में से एक है। आपको बता दे पाकुड़ जिला के रूप में घोषित होने के पश्चात स्थानीय नागरिकों में कौतूहल पैदा हुआ कि पाकुड़ की तस्वीर व तकदीर बदल जायेगी। कुछ समय के लिए ऐसा लगा भी। लेकिन समय गुजरने के साथ निराशा की पेशकश हो रही है। आज के आधुनिक/वैश्विक दौर में भी पाकुड़ के आमलोगों को रोजगार की तलाश में परिवार को छोड़कर ट्रेन मार्ग से अन्यत्र शहर/ राज्य में कहीं जाकर रोजगार के अवसर तलाशने पड़ रहे हैं। जबकि पाकुड़ के उदार से बेशकिमती कोयला, पत्थर निकालकर अन्यत्र ले जाया जा रहा है, जिससे सरकार को राजस्व वसूली तो होता है, मगर बदले में स्थानीय को तिनके के ढेर में चौवान्नी बराबर भी रोजगार अन्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। यूं तो पाकुड़़ की जान कहे जाने वाली पत्थर व्यवसाय भी पहले जैसा नहीं रहा। पाकुड़ के मालपहाडी में जहां लाखों लोग दिन – रात खदान – क्रेशर में कार्य करते हुए अपने परिवार के पेट भरते थे, वो नजारा लगभग घटकर करीब 5 प्रतिशत रह गया है। गौर करे तो बीड़ी उद्योग में भी पहले के मुकाबले काफी गिरावट आई है। यानी पाकुड़वासी रोजगार के तलाश में अन्यत्र जाने को विवश है। यहां कि बेशकीमती खनिज सम्पदा बाहर ले जाया जा रहा है, मगर स्थानीय नागरिकों के लिए रोजगार की अवसर स्थापित करने की दिशा में अबतक के केन्द्रीय/ राज्य सरकारें अनदेखी की।  नतीजतन सर्वांगीण विकास की दिशा में पहल करते हुए जिला में न कोई औद्योगिक इकाइयां स्थापित की गई है और न ही बेहतरीन स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था उपलब्ध कराने हेतु सुपर स्पेशलिटी अस्पताल या मेडिकल कॉलेज स्थापित की गई और ना ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा जैसे साइंस/ इंजीनियरिंग, मेडिकल अन्य उच्च शिक्षा के लिए कोई अध्ययन केन्द्र स्थापित किया गया है।  यानी पाकुड़ जिला के रूप में स्थापित होने के दौरान जो सपना पाकुड़ वासियों ने संजोया था, वो सपना अधूरा ही रह गया। गौरतलब हो कि एक नई किरण बहुमत की वर्तमान हेमन्त सरकार 2.0 पर जगह है। मगर इस प्रयोजनार्थ को किस हद तक वास्तविक स्वरूप चरितार्थ करने में कामयाब होंगे, उस पर पाकुड़ की निगाहें टिकी हुई रहेंगी। बाहरेहाल जो भी हो वर्तमान उपायुक्त मनीष कुमार व पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार की एक्टिविटी से पाकुड़ वासियों में एक उम्मीद की झलक पेश होता हुआ नजर आ रहा है कि शायद पाकुड़ को संवारने में उनकी योगदान आगे चलकर उत्कृष्ट पंक्ति को कलमबद्ध कर सकते हैं। आम-जनों में एक सकारात्मक पंक्ति समायोजित हुआ है कि शायद उपायुक्त मनीष कुमार की एक्टिविटी/ कार्यशैली पाकुड़ को विकसित ज़िले की पंक्ति में ले जाने की अवयवों को बास्तविक स्वरूप चरितार्थ करने में अहम भूमिका अदा सुनिश्चित कर सकते हैं। उन्होंने प्रोजेक्ट परख: तैयारी उड़ान की व प्रोजेक्ट प्रयास: हुनर से हुनर तक का सफर अवयवों को बास्तविक स्वरूप चरितार्थ करने में नींव रखी है जो काबिले तारीफ है। आधुनिक वैश्विक दौर में क्षेत्र की सर्वांगिण विकास में औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने समेत बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था हेतु सुपर स्पेशलिटी अस्पताल या मेडिकल कॉलेज व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा जैसे इंजीनियरिंग, मेडिकल इत्यादि की पढ़ाई हेतु उच्च अध्ययन केन्द्र/ अवयवों को भी पाकुड़ में स्थापित करना बेहद जरूरी है। जो जिले को पिछड़ता पाकुड़ से पछाड़ता पाकुड़ की नारे को बुलंद करने में मददगार साबित होंगे। साथ ही विकसित जिला की पंक्ति को कलमबद्ध निश्चित रूप से करेंगे। याद रहे, आईएएस एंड आईपीएस (अधिकारी) किसी भी देश का रीढ़/ मेरुदंड होता है, चाहे तो (सार्वागीण विकास की दिशा में) क्षेत्र/ जिला का तस्वीर बदल सकते हैं।

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