
नेशनल प्रेस टाइम्स,ब्यूरो।
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू समाज में एकता और भारत को सैन्य शक्ति एवं अर्थव्यवस्था की दृष्टि से इतना शक्तिशाली बनाने का आह्वान किया है कि कई शक्तियां एक साथ आकर भी इस पर ‘‘जीत’’ हासिल न कर सकें। हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ताकत को सद्गुणों और नीतिपरायणता के साथ जोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि मात्र निरंकुश शक्ति दिशाहीन हो सकती है और ‘‘घोर हिंसा’’ को जन्म दे सकती है। उन्होंने आरएसएस से जुड़ी साप्ताहिक पत्रिका ‘ऑर्गनाइजर’ के ताजा संस्करण में प्रकाशित साक्षात्कार में कहा कि भारत के पास शक्तिशाली होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि वह अपनी सभी सीमाओं पर बुरी ताकतों की दुष्टता देख रहा है। पत्रिका ने कहा कि यह बातचीत 21-23 मार्च, 2025 को आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक की पृष्ठभूमि में हुई थी और इसे ऑपरेशन सिंदूर से पहले ऑर्गनाइजर-पाञ्चजन्य कार्यालय में रिकॉर्ड किया गया था। राष्ट्रीय सुरक्षा, सैन्य शक्ति और आर्थिक शक्ति पर संघ के दृष्टिकोण के बारे में पूछे जाने पर भागवत ने कहा, हमें शक्ति संपन्न होना ही पड़ेगा। संघ में प्रार्थना की पंक्ति ही है-‘अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम्’ (हमें इतनी शक्ति दीजिए कि हमें विश्व में कोई न हरा सके)। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। भागवत ने कहा, ‘सच्ची शक्ति आंतरिक होती है। सुरक्षा के मामले में हम किसी पर निर्भर न हों, हम अपनी सुरक्षा स्वयं कर लें। सारी दुनिया मिलकर भी हमें जीत न सके, इतना सामर्थ्य संपन्न हमें होना ही है।